Thursday, 20 April 2017

मत पूछना क्या हुआ

बस मेरा चेहरा देखना और समझ जाना,
कल जो मैं दफ़्तर आऊं, मत पूछना क्या हुआ।

हाँ की ख़ुशी और ना के गम के अंतर से,
सब पता चल जायेगा, मत पूछना क्या हुआ।

उसकी ना में भी ख़ुशी ढूंढ लूँगा,
साथ तुम सब का हुआ अगर, मत पूछना क्या हुआ।

ग़र जो मेरी बत्तीसिया दिख रही हो पल पल,
मिठाइयां मांगना पर, मत पूछना क्या हुआ ।

उम्मीद

मैं बैठा सूखे पहाड़ो के सामने,
बारिश के इंतजार में।
इन नीले साफ़ आसमानों को ताकता।
इस तपती धूप में भी कर रहा हुँ उम्मीद।
शायद उम्मीद इसी को कहते है।
यक़ीनन उम्मीद इसी को कहते है।

मत पूछना क्या हुआ

बस मेरा चेहरा देखना और समझ जाना, कल जो मैं दफ़्तर आऊं, मत पूछना क्या हुआ। हाँ की ख़ुशी और ना के गम के अंतर से, सब पता चल जायेगा, मत पूछना क...